शकुनि मामा : महाभारत में उपस्थित सबसे बुद्धिमान व्यक्ति
शकुनि मामा जिन्हें श्री कृष्ण से मामा कहलवाने में भय लगता था। वो महाभारत में श्री कृष्ण के बाद सबसे बुद्धिमान व्यक्ति थे। उनकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा तो स्वयं भगवान कृष्ण ने की थी। शकुनि गांधार साम्राज्य के युवराज थे और अपने पिता की मृत्यु के बाद वहाँ के राजा भी रहे थे। उनकी बहन गांधारी का विवाह हस्तिनापुर के नेत्रहीन महाराज धृतराष्ट्र के साथ हुआ था। महाभारत के युद्ध में शकुनि की अहम भूमिका थी। जैसा कि हम सब शकुनि के बारे में जानते है वो बुद्धिमान और चालक थे और वो अपने ज्येष्ठ भांजे दुर्योधन का सभी परिस्थिति में सहयोग करते थे बल्कि उसके द्वारा किए जा रहे अमान्य कार्य को और बढ़ावा देते थे। शकुनि को ही महाभारत युद्ध का मुख्य कारण कहा जा सकता है।
शकुनि के जीवन का संक्षिप्त परिचय :- शकुनि का जन्म द्वापर युग में गांधार के राजा सुबाल के यहाँ हुआ था। गांधार जो की वर्तमान में अफ़ग़ानिस्तान में है और उस समय उसकी राजधानी तक्षशिला थी जो की वर्तमान में इस्लामाबाद में है। शकुनि की बहन थी गांधारी जिनका विवाह धृतराष्ट्र के साथ हुआ था और इन्होंने ही सौ कौरवों को जन्म दिया था। शकुनि के विभिन्न भाई थे उनमे से कुछ मुख्य थे अचल और वृषक। शकुनि के पुत्र का नाम उलूका था जो की महाभारत के युद्ध में गुप्तचर थे।
शकुनि- खेल के विद्वान और चालाक खिलाड़ी :- क्यों शकुनि को पासों के खेल का विद्वान कहा जाता है इसके पीछे भी एक रहस्य है। शकुनि ने अपने पिता की राख से उन पासों को बनाया और उन पासों में शकुनि के पिता की आत्मा रहती थी इस लिये जो शकुनि कहता था पासे वही अंक दिखलाते थे। महाभारत में पासों के खेल का आयोजन करना भी शकुनि की ही रणनीति थी। जिससे पांडव अलग ना रह पाये और उसके शिकार में फसते चले गये। धर्मानुसार शकुनि ने अधर्म कर पांडवों को पासों के खेल में पराजित किया था। शकुनि के अधर्म के कारण ही युधिष्ठिर अपने भाइयों को स्वयं को और अपनी पत्नी को भी हार गये और साथ ही तेरह वर्षों का वनवास भी भोगना पड़ा।
शकुनि की रणनीतिया:-
शकुनि ने दुर्योधन के साथ मिलकर पांडवों को अनेकों बार मारने का प्रयास किया। सबसे पहले शकुनि और दुर्योधन ने भीम की खीर में ज़हर घोल के उसे मारने का प्रयास किया था।
पांडवों के पूरे परिवार को लाक्षागृह में जला के ख़त्म करने का खेल रचा शकुनि ने।
शल्य को छल से अपनी सेना में मिला कर एक और छल रचा शकुनि।
अभिमन्यु को छल से मारने की रणनीति भी शकुनि की बुद्धि थी।
शकुनि अपनी बहन गांधारी के विवाह से प्रसन्न नहीं थे। परंतु भीष्म के भय से वो मना नहीं कर सके। और यही अपमान उन्हें खाये जा रहा था और वो इसका बदला लेने के लिए इच्छुक थे। शकुनि को भय था की यदि वो हस्तिनापुर से गये तो वो साम्राज्य पांडवों को मिल जायेगा और उनकी बहन और भांजे साम्राज्य से अलग हो जायेगे। इसी भय के कारण शकुनि ने छल का सहारा लेते हुए अधर्म की इतनी सीमा पर कर दी कि कुरुक्षेत्र का युद्ध ही अंतिम उपचार बचा था।
स्वयं श्री कृष्ण ने शकुनि की बुद्धिमत्ता कि प्रशंशा की परंतु उन्होंने ये भी कहा कि यदि शकुनि अपनी बुद्धि का प्रयोग धर्म के मार्ग पर चल कर करते तो विश्व को अनेकों नयी उपलब्धियों की प्राप्ति करवाते।
।। जय श्री कृष्ण ।।